लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2801
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण पर एक निबन्ध लिखिए।

अथवा
शतपथ ब्राह्मण का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

उत्तर -

शुक्ल यजुर्वेद से सम्बन्धित ब्राह्मण का नाम शतपथ ब्राह्मण है। इसका नाम शतपथ ब्राह्मण इसलिए पड़ा क्योंकि इसमें १०० अध्याय हैं। काण्व और माध्यन्दिन शुक्ल यजुर्वेद की ये दो शाखाएँ हैं, इन्हीं दोनों ब्राह्मणों का नाम 'शतपथ' है। काण्वशाखीय शतपथ ब्राह्मण का सम्पादन आचार्य जे. एगलिंग ने किया है। माध्यन्दिन शाखीय शतपथ ब्राह्मण का प्रथम प्रकाशन आचार्य बेबर ने १८५५ ई. में किया है। इसके बाद दूसरा संस्करण १९१२ ई. में सत्यव्रत सामश्रयी जी ने सायणभाष्य के साथ प्रकाशित किया है। काण्वशास्त्रीय शतपथ ब्राह्मण में सत्रह काण्ड, १०४ अध्याय ४३५ ब्राह्मण और ६८०६ कण्डिकाएँ हैं। माध्यन्दिन शतपथ ब्राह्मण में चौदह काण्ड १०० अध्याय ६८ प्रपाठक, ४३८ ब्राह्मण और ७६२४ कण्डिकाएँ हैं। विषय की एकता होने पर भी दोनों के वर्णन क्रम और अध्यायों, ब्राह्मणों और क्रण्डिकाओं में पर्याप्त अन्तर है। काण्वशास्त्रीय शतपथ ब्राह्मण में प्रपाठक नामक उपखण्ड नहीं है। इसके अलावा दोनों में एक अन्तर और भी दृष्टिगोचर होता है। वह यह कि माध्यन्दिन शाखीय शतपथ के पहले काण्ड में जो विषय प्रतिपादित है काण्वशाखीय शतपथ ब्राह्मण के द्वितीय काण्ड में है और द्वितीय काण्ड का विषय काण्व के प्रथम काण्ड में है।

शतपथ ब्राह्मण के प्रथम काण्ड में दर्शपूर्णमास दृष्टियों का उल्लेख किया गया है। इसमें दो दृष्टियों का वर्णन है -

(१) दर्शदृष्टि और (२) पौर्णमास दृष्टि।

दर्शदृष्टि अमावस्या के बाद प्रतिपद् (प्रतिपदा) को सम्पन्न होती थी और पौर्णमास दृष्टि पूर्णिमा के बाद प्रतिपद् (प्रतिपदा) को सम्पन्न होती थी। द्वितीय काण्ड में अग्निहोत्र, पिण्ड पितृयज्ञ, आग्रायण और चातुर्मास्य का उल्लेख है। गृहस्थों द्वारा प्रातः सायभ किया जाने वाला यज्ञ अग्निहोत्र है। पितरों के उद्धार के लिए जो श्राद्ध तर्पण किया जाता है उसे पिण्ड पितृयज्ञ कहते हैं। अगहन या मार्गशीर्ष मास में नये अन्न से जो हवन किया जाता है उसे 'आग्रायण'' कहते ; हैं। वर्षा ऋतु में चार महीने तक चलने वाला यज्ञ चातुर्मास कहा जाता है। तृतीय और चतुर्थ काण्ड में सोमयाग के विधान का वर्णन किया गया है। सोमयाग में सोमलता से कूट-कूटकर रस निकाला जाता था और उसमें गाय का दूध तथा मधु मिलाकर देवताओं को चढ़ाया जाता था और अग्नि में हवन किया जाता था। अग्निष्टोम सोमयाग का प्रकृतिभूत याग है और ज्योतिष्टोम आदि विकृति याग है। प्रकृति याग का वर्णन तृतीय काण्ड में और विकृति याग का वर्णन चतुर्थ काण्ड में हुआ है। पञ्चम काण्ड में राजसूय एवं सोमयाग का वर्णन किया गया है। राजसूय वही राजा कर सकता था जिसका अभिषेक हो चुका हो। इसको करना प्रतिष्ठा की बात मानी जाती थी। षष्ठ काण्ड से लेकर दशम काण्ड तक अग्नि चयन का वर्णन किया गया है। इन काण्डों में शाण्डिल्य का प्रामाण्य स्वीकृत है। इन काण्डों में गान्धार, केकय, शाल्व आदि जनपदों का उल्लेख है। शेष काण्डों में कुरु, पाञ्चाल, कौशल, विदेह आदि का उल्लेख है। एकादश से चतुर्दश काण्ड तक परिशिष्ट के रूप में वर्णन है। एकादश काण्ड में दर्शपूर्णमास, पञ्चमहायज्ञ तथा पशु बन्ध के अवशिष्ट विधानों का वर्णन है। द्वादश काण्ड में द्वादशसत्र, सम्वत्सरसत्र, सौत्रामणि, अन्त्येष्टि आदि का विस्तृत विवेचन है। त्रयोदश काण्ड में अश्वमेध, नरमेध, सर्वमेध और पितृमेध का वर्णन है। अभिषिक्त राजा ही अश्वमेध यज्ञ कर सकता था। चतुर्दश काण्ड में 'प्रवर्ग्य अनुष्ठान का वर्णन है। अन्तिम पाँच अध्याय वृहदारण्यकोपनिषद् है जिसका वर्णन उपनिषदों के वर्णन के प्रसंग में किया जायेगा।

शतपथ ब्राह्मण का प्राचीनतम ब्राह्मण साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है। इसमें तत्कालीन आर्यों के जीवन के विभिन्न दृष्टिकोण का प्रामाणिक परिचय प्राप्त होता है। विशालता एवं विषय की दृष्टि से यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। शतपथ ब्राह्मण काल में यज्ञीय विधि-विधानों का विधिवत् विकास हो चुका था। इसकी प्राचीनता के सम्बन्धों में पाश्चात्य विद्वानों में मतैक्य नहीं है। डॉ. वाकरनागेल का मत है कि 'भाषा की दृष्टि से ऐतरेय और शतपथ ब्राह्मण परवर्ती काल के ब्राह्मण हैं और तैत्तिरीय एवं पञ्चविंश ब्राह्मण प्राचीनतम काल के ब्राह्मण हैं। किन्तु डॉ. कीथ के मत में शतपथ ब्राह्मण अन्य ब्राह्मणों की अपेक्षा प्राचीनतर है। क्योंकि शतपथ ब्राह्मण स्वरांकित रूप में उपलब्ध होता है जबकि तैत्तिरीय को छोड़कर अन्य कोई भी ब्राह्मण ग्रन्थ स्वरांकित रूप में प्राप्त नहीं होता। शतपथ ब्राह्मण काल में ब्राह्मण संस्कृति का प्रमुख केन्द्र कुरु- पाञ्चाल था। ऐतिहासिक एवं भौगोलिक वर्णनों से ऐसा मालूम पड़ता है। कुरुक्षेत्र का राजा जनमेजय था और पाञ्चालवासी आरुणि उनके कुलगुरु थे। ब्राह्मण संस्कृति उस समय मध्यदेश, कोशल, विदेह तक फैल चुकी थी। क्योंकि विदेहराज जनक की सभा में कुरु- पाञ्चाल से आये हुए अनेक ब्राह्मण थे। इन ब्राह्मणों में परस्पर शास्त्रार्थ एवं वाद-विवाद होता था जो शतपथ ब्राह्मण के अन्तिम अध्यायों में वर्णित हैं। ब्राह्मणों के नेता उद्दालक आरुणि के शिष्य याज्ञवल्क्य थे। किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय तक विदेह ब्राह्मण धर्म से पूर्णतः प्रभावित नहीं हुआ था, क्योंकि विदेहराज माधव, जिनके कुलगुरु गौतम राहुगण थे, किसी समय सरस्वती नदी के तट पर रहते थे। वहाँ से अग्निवैश्वानर पृथ्वी को जलाता हुआ पूर्व की ओर बढ़ता गया और सदा नीरा नदी के तट पर पहुँचकर वहीं रुक गया। इधर विदेहराज माधव अपने कुलगुरु के साथ उसके पीछे-पीछे वहाँ तक गयें और अग्निवैश्वानर से अपने निवास के लिए पूछा तक अग्निवैश्वानर ने उन्हें उस नदी के पूर्व प्रदेश में रहने की आज्ञा दी। आज भी यह नदी कोशल और विदेह की सीमा समझी जाती है। शतपथ ब्राह्मण के आख्यान, उपाख्यान, यज्ञीय विधियों के व्याख्यानपरक् उपदेशात्मक एवं नैतिक आदर्शों से अनुप्रमाणित होते हैं। उर्वशी - पुरुरवा का आख्यान मरुभूमि के शाद्धल के समान रम्य है। इस आख्यान का मूल स्रोत ऋग्वेद का उर्वशी - पुरुरवा संवाद है। आख्यान साहित्य की दृष्टि से यह शतपथ ब्राह्मण महत्वपूर्ण है। प्राचीन आख्यानों में मनु की कथा बड़ी मार्मिक तथा सरस रूप में इसमें निबद्ध है। पुराणों के मत्स्यावतार की गाथा भी इसी ब्राह्मण में सर्वप्रथम निहित मिलती है। जहाँ भयंकर बाढ़ आने पर इसी अपूर्व मत्स्य ने मनु की रक्षा की थी। यह कथा इसी क्रम में बाइबिल में भी मिलती है। इस ब्राह्मण में सांख्य दर्शन के आचार्य आसुरी, कुसपति, जनमेजय, पाण्डव प्रमुख अर्जुन तथा जनक उपाधिकारी राजाओं का उल्लेख मिलता है। शतपथ ब्राह्मण में याज्ञवल्क्य के गुरु उद्दालक आरुणि का व्यक्तित्व एवं पाण्डित्य आकर्षक रूप में उपलब्ध है। ऐतिहासिक तथ्यों के उद्घाटन के लिए भी इस ग्रन्थ की महत्ता अक्षुण्य है। शतपथ ब्राह्मण में विधि-विधान एवं विविध आख्यान तत्कालीन सामाजिक जीवन के नैतिक स्तर एवं चारित्रिक विशेषताओं का पूर्ण ज्ञान प्रदान करने में समर्थ हैं। यही नहीं धर्मशास्त्र एवं धर्म विज्ञान के जिज्ञासु के लिए भी यह ब्राह्मण अनुपम ग्रन्थ है।

ब्राह्मणों में प्रजापति को अधिकतर विश्व का एकमात्र सृष्टा माना गया है। उसी से जगत के सम्पूर्ण प्राणी उत्पन्न होते हैं किन्तु ब्राह्मणों में कुछ ऐसे स्थल हैं जहाँ प्रजापति को ही उत्पन्न हुआ माना गया है। शतपथ ब्राह्मण में एक उपाख्यान में बताया गया है कि प्रारम्भ में जल ही जल था, जलों का एक सागर। उसने अपने को कष्ट दिया और घोर तपस्या की अर्थात् ऊष्मा अर्जित की तब उनसे एक सोने का अण्डा उत्पन्न हुआ। वह अण्डा एक सम्वत्सर तक जल में तैरता रहा। एक सम्वत्सर के पश्चात् उस अण्डे से एक मनुष्य उत्पन्न हुआ। वह प्रजापति ही था। तब उसने अण्डे के दो टुकड़े कर दिये। एक सम्वत्सर के बाद प्रजापति ने बोलने का प्रयास किया तब उसके मुख से 'भू' यह शब्द निकला जो पृथ्वी बन गया। पुनः भुवः' कहा अन्तरिक्ष लोक बन गया। पुनः स्वः कहा स्वर्गलोक बन गया। प्रजापति एक वर्ष के बाद बोले थे अतः नवजात शिशु एक वर्ष के बाद बोलने का प्रयास करता है।

समग्र ब्राह्मण साहित्य का मूल्यांकन करते हुए श्रीबलदेव उपाध्याय ने अपने विचार प्रकट किये हैं। उनको हम शतपथ ब्राह्मण के महत्व के रूप में भी देख सकते हैं क्योंकि शतपथ ब्राह्मण, ब्राह्मण साहित्य का प्रतिनिधि ग्रन्थ है. जैसे-

(i) यज्ञों के नाना रूपों तथा विभिन्न अनुष्ठानों के इतिहास का पूर्ण परिचय देता है। (ii) हम उन निर्वचनों से परिचय पाते हैं जो निरुक्त की निरुक्ति का मौलिक आधार है।

(iii) उन सुन्दर आख्यानों का मूल रूप हमें यहाँ मिलता है जिनका विकास अवान्तरकालीनं पुराणों में विशेषतः दृष्टिगोचर होता है।

(iv) कर्म मीमांसा के उत्थान तथा प्रारम्भ का रूप जानने के लिए ब्राह्मण पूर्ण पीठिका का काम करता है।

भाषाशास्त्रीय दृष्टि से भाषा के विकास की गाथा का अध्ययन शतपथ ब्राह्मण में किया जा सकता है। सांस्कृतिक एवं धार्मिक दृष्टि से वैदिक संहिता एवं परवर्ती काल का विकास भी इस ब्राह्मण साहित्य में दर्शनीय है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वेद के ब्राह्मणों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- ऋग्वेद के वर्ण्य विषय का विवेचन कीजिए।
  3. प्रश्न- किसी एक उपनिषद का सारांश लिखिए।
  4. प्रश्न- ब्राह्मण साहित्य का परिचय देते हुए, ब्राह्मणों के प्रतिपाद्य विषय का विवेचन कीजिए।
  5. प्रश्न- 'वेदाङ्ग' पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण पर एक निबन्ध लिखिए।
  7. प्रश्न- उपनिषद् से क्या अभिप्राय है? प्रमुख उपनिषदों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  8. प्रश्न- संहिता पर प्रकाश डालिए।
  9. प्रश्न- वेद से क्या अभिप्राय है? विवेचन कीजिए।
  10. प्रश्न- उपनिषदों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- ऋक् के अर्थ को बताते हुए ऋक्वेद का विभाजन कीजिए।
  12. प्रश्न- ऋग्वेद का महत्व समझाइए।
  13. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण के आधार पर 'वाङ्मनस् आख्यान् का महत्व प्रतिपादित कीजिए।
  14. प्रश्न- उपनिषद् का अर्थ बताते हुए उसका दार्शनिक विवेचन कीजिए।
  15. प्रश्न- आरण्यक ग्रन्थों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- ब्राह्मण-ग्रन्थ का अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- आरण्यक का सामान्य परिचय दीजिए।
  18. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
  19. प्रश्न- देवता पर विस्तृत प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तों में से किसी एक सूक्त के देवता, ऋषि एवं स्वरूप बताइए- (क) विश्वेदेवा सूक्त, (ग) इन्द्र सूक्त, (ख) विष्णु सूक्त, (घ) हिरण्यगर्भ सूक्त।
  21. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में स्वीकृत परमसत्ता के महत्व को स्थापित कीजिए
  22. प्रश्न- पुरुष सूक्त और हिरण्यगर्भ सूक्त के दार्शनिक तत्व की तुलना कीजिए।
  23. प्रश्न- वैदिक पदों का वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- 'वाक् सूक्त शिवसंकल्प सूक्त' पृथ्वीसूक्त एवं हिरण्य गर्भ सूक्त की 'तात्त्विक' विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में प्रयुक्त "कस्मै देवाय हविषा विधेम से क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- वाक् सूक्त का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  28. प्रश्न- वाक् सूक्त अथवा पृथ्वी सूक्त का प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- वाक् सूक्त में वर्णित् वाक् के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  30. प्रश्न- वाक् सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  31. प्रश्न- पुरुष सूक्त में किसका वर्णन है?
  32. प्रश्न- वाक्सूक्त के आधार पर वाक् देवी का स्वरूप निर्धारित करते हुए उसकी महत्ता का प्रतिपादन कीजिए।
  33. प्रश्न- पुरुष सूक्त का वर्ण्य विषय लिखिए।
  34. प्रश्न- पुरुष सूक्त का ऋषि और देवता का नाम लिखिए।
  35. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। शिवसंकल्प सूक्त
  36. प्रश्न- 'शिवसंकल्प सूक्त' किस वेद से संकलित हैं।
  37. प्रश्न- मन की शक्ति का निरूपण 'शिवसंकल्प सूक्त' के आलोक में कीजिए।
  38. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त में पठित मन्त्रों की संख्या बताकर देवता का भी नाम बताइए।
  39. प्रश्न- निम्नलिखित मन्त्र में देवता तथा छन्द लिखिए।
  40. प्रश्न- यजुर्वेद में कितने अध्याय हैं?
  41. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त के देवता तथा ऋषि लिखिए।
  42. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। पृथ्वी सूक्त, विष्णु सूक्त एवं सामंनस्य सूक्त
  43. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त में वर्णित पृथ्वी की उपकारिणी एवं दानशीला प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- पृथ्वी की उत्पत्ति एवं उसके प्राकृतिक रूप का वर्णन पृथ्वी सूक्त के आधार पर कीजिए।
  45. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  46. प्रश्न- विष्णु के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- विष्णु सूक्त का सार लिखिये।
  48. प्रश्न- सामनस्यम् पर टिप्पणी लिखिए।
  49. प्रश्न- सामनस्य सूक्त पर प्रकाश डालिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। ईशावास्योपनिषद्
  51. प्रश्न- ईश उपनिषद् का सिद्धान्त बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।
  52. प्रश्न- 'ईशावास्योपनिषद्' के अनुसार सम्भूति और विनाश का अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा विद्या अविद्या का परिचय दीजिए।
  53. प्रश्न- वैदिक वाङ्मय में उपनिषदों का महत्व वर्णित कीजिए।
  54. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के प्रथम मन्त्र का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के अनुसार सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करने का मार्ग क्या है।
  56. प्रश्न- असुरों के प्रसिद्ध लोकों के विषय में प्रकाश डालिए।
  57. प्रश्न- परमेश्वर के विषय में ईशावास्योपनिषद् का क्या मत है?
  58. प्रश्न- किस प्रकार का व्यक्ति किसी से घृणा नहीं करता? .
  59. प्रश्न- ईश्वर के ज्ञाता व्यक्ति की स्थिति बतलाइए।
  60. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या में क्या अन्तर है?
  61. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या (ज्ञान एवं कर्म) को समझने का परिणाम क्या है?
  62. प्रश्न- सम्भूति एवं असम्भूति क्या है? इसका परिणाम बताइए।
  63. प्रश्न- साधक परमेश्वर से उसकी प्राप्ति के लिए क्या प्रार्थना करता है?
  64. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् का वर्ण्य विषय क्या है?
  65. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  66. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  67. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  68. प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।
  69. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  70. प्रश्न- जैन दर्शन का नया विचार प्रस्तुत कीजिए तथा जैन स्याद्वाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या अभिप्राय है? बौद्ध धर्म के साहित्य तथा प्रधान शाखाओं के विषय में बताइये तथा बुद्ध के उपदेशों में चार आर्य सत्य क्या हैं?
  72. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  73. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  74. प्रश्न- क्या बौद्धदर्शन निराशावादी है?
  75. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  76. प्रश्न- विविध दर्शनों के अनुसार सृष्टि के विषय पर प्रकाश डालिए।
  77. प्रश्न- तर्क-प्रधान न्याय दर्शन का विवेचन कीजिए।
  78. प्रश्न- योग दर्शन से क्या अभिप्राय है? पतंजलि ने योग को कितने प्रकार बताये हैं?
  79. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  80. प्रश्न- मीमांसा का क्या अर्थ है? जैमिनी सूत्र क्या है तथा ज्ञान का स्वरूप और उसको प्राप्त करने के साधन बताइए।
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन में ईश्वर पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- षड्दर्शन के नामोल्लेखपूर्वक किसी एक दर्शन का लघु परिचय दीजिए।
  83. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  84. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। श्रीमद्भगवतगीता : द्वितीय अध्याय
  85. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के अनुसार आत्मा का स्वरूप निर्धारित कीजिए।
  86. प्रश्न- 'श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के आधार पर कर्म का क्या सिद्धान्त बताया गया है?
  87. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता द्वितीय अध्याय के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए?
  88. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का सारांश लिखिए।
  89. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता को कितने अध्यायों में बाँटा गया है? इसके नाम लिखिए।
  90. प्रश्न- महर्षि वेदव्यास का परिचय दीजिए।
  91. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता का प्रतिपाद्य विषय लिखिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( आरम्भ से प्रत्यक्ष खण्ड)
  93. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं पदार्थोद्देश निरूपण कीजिए।
  94. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं द्रव्य निरूपण कीजिए।
  95. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं गुण निरूपण कीजिए।
  96. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं प्रत्यक्ष प्रमाण निरूपण कीजिए।
  97. प्रश्न- अन्नम्भट्ट कृत तर्कसंग्रह का सामान्य परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन एवं उसकी परम्परा का विवेचन कीजिए।
  99. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों का विवेचन कीजिए।
  100. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष प्रमाण को समझाइये।
  101. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के आधार पर 'गुणों' का स्वरूप प्रस्तुत कीजिए।
  102. प्रश्न- न्याय तथा वैशेषिक की सम्मिलित परम्परा का वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक के प्रकरण ग्रन्थ का विवेचन कीजिए॥
  104. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  105. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( अनुमान से समाप्ति पर्यन्त )
  106. प्रश्न- 'तर्कसंग्रह ' अन्नंभट्ट के अनुसार अनुमान प्रमाण की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- तर्कसंग्रह के अनुसार उपमान प्रमाण क्या है?
  108. प्रश्न- शब्द प्रमाण को आचार्य अन्नम्भट्ट ने किस प्रकार परिभाषित किया है? विस्तृत रूप से समझाइये।

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book